Wednesday, October 05, 2011

Once Upon A Time in October



  घुटी घुटी  थी   सर्दियाँ , रुकी रुकी  थी  सिसकियाँ 
   बुने थे हमने स्वपन जब , कुल्लड  में ले के  चुस्कियां 

है याद मुझको आज भी , वो उसका बाल खोलना 
आँखों  से मुझको तोलना , फिर पुतलियों से  बोलना ,
जब में देखता था टक टकी , संभलती थी   चुन्नियाँ 

है याद उसकी कपकपी , में पास आता था जभी 
वो दर्द दे के जाती थी , वो मारती   थी कोहनियाँ 

हूँ देखता ये देख कर , उधर न फिर से देखना 
सखी सुने या न सुने , वो खुद से कुछ भी बोलना 
ऊँगली से लट टटोलना , पेरों  से फर्श कुरेदना 
बिना वजह रूमाल पे , गांठ मार कर के खोलना 

वो एक थी हज़ार में , थी छेडती बाज़ार में ,
मुझ पे थी गेंद फेंकती , जब खेलती थी सतोलियाँ ,
घुटी घुटी  थी   सर्दियाँ , रुकी रुकी  थी  सिसकियाँ 
बुने थे हमने स्वपन जब , कुल्लड  में ले के  चुस्कियां 

पनप रही जब प्रीत थी , तब जिन्दगी में शीत थी 
सघर्ष स्वर नेपथ्य था, वो जैसे प्रेम गीत थी ,
मरुस्थल  के ताप में , वो आती थी बन के कहकशां 

में  फसा रहा  था द्वन्द में , भविष्य के प्रबंध में 
वर्तमान गुजर गया और  खो गयी  वो  धुंध  में 
निशब्द प्रीत के प्रतिधवनी , है किस से पलट के आ रही 
है कौन याद कर रहा मुझे , क्यों आ रही हैं हिचकियाँ 

घुटी घुटी  थी   सर्दियाँ , रुकी रुकी  थी  सिसकियाँ 
बुने थे हमने स्वपन जब , कुल्लड  में ले के  चुस्कियां 


photo credit :Buzzom