परिणय निर्णय ,कर भी लो अब , कहते हैं परिजन हमको
प्रेम मिलेगा , साथ मिलेगा , मिलेगा उष्ण भोजन हमको
उम्र हो रही , कमर खो रही , दिखने लगी सफेदी है
ये बकरा कब कटेगा आखिर , पूछ रही बलि वेदी है .
मित्र कह रहे , कर भी ले अब , अच्छा खाता पीता है
जलन हो रही क्यूँ तू आखिर ,इतने सुख से जीता है .
नहीं आमंत्रित करते मुझको ,उत्सव और त्योहारों में
याद मुझे करते हैं जब , जाना होता है बारो में
सुख
चिन्तक पूछते मुझ से , " क्या , तुझको किसी से प्यार है ? "
" All your Exs got Married " , किसका तुझे
इंतज़ार है ?
करलो शादी ,अभी समय है , योवन की तुम
पर दृष्टि है ,
करो संतति , वंश बढाओ , ऐसे ही चलती
स्रष्टि है .
निशब्द हुआ सुनता
मैं उनके , प्रवचनों , सुझावों को
और
तोलता हूँ
मैं , अपने जीवन के
अभावों को ,
" खो रहा परम सुख जीवन का मैं " वो ऐसा मुझे बताते हैं
किन्तु निस्तेज नयन उनके , कुछ और ही कथा सुनाते हैं .
उन्हें नहीं है
रूचि तनिक भी, सुबह शाम की लाली में
कोयल के
संवादों में , गुलमोहर की डाली में
जीवन के ध्येय की जिज्ञासा , बेकार के बातें लगती है
उनकी
विषैली
व्यवहारिकता , हर बात में मुझको डसती है
कोई तेज़ नहीं जीवन में उनके , सब कथा कथानक सूनी हैं .
किराने की दुकान सा जीवन ,और सपने भी परचूनी हैं .
अपनी निष्क्रियता का कारण , वो गृहस्थी को बतलाते हैं
साथी को ठहरा अपराधी , खुद त्याग मूर्ती बन जाते है
थकते नहीं हैं
ज़िन्दगी निबाह कर के वो ,
चाहे भी अगर तो जाये कहाँ चाह कर के वो ,
कहते नहीं मुख से कभी ,पर हम को है पता ,
सोचते हैं फस गए , विवाह कर के वो .
मेरे जीवन के चिंता में , जो खोये अपनी सुध बुध हैं ,
क्यों नहीं समझते , मेरे इस निश्चय की , एक वजह वो ही खुद हैं
Please Note: This poem was written in part
frustrated and part whimsical state of mind. A friend's loose remark ignited
this .I don't intend to be judgmental. My apologies in advance if you feel
offended.