24 years of existence: No invention and No incorporation yet! Even Mt. Everest remains out of reach. What a waste the years have been!!
Here is something I wrote last night . These thoughts were germinated in my mind around my birthday couple of days back .It reached a crescendo last night and result is this poem. I hope you would like it.प्रारंभ से पूर्व ही पटाक्षेप हो गया ,
जीवन प्रवाह में स्वप्न बस अवक्षेप हो गया
करता रहा प्रतीक्षा , रात भर वो भोर की
सोचा किया की , क्षितिज पार कहीं सूर्य सो गया
बचपन में था चाहा उसने छुना आकाश को
फिर घोसले का प्रेम उसकी बेडी हो गया
जीवन में शीत आयी तौ दाना " खुदा" हुआ
रिमझिम जो बरसे मेघ तो , महा भोज हो गया.
कौए की भांति पाले उसने, सपने किसी और के
जब उड़ गयी वो कोयलें , वीराना हो गया.
देखो सरल इंसान कितना गूढ़ हो गया
योवन के राह देखने में प्रोढ़ हो गया
सर्वत्र है सम्मान उसका , पर किसको ये ज्ञात है
जय घोष में दबी कहीं जो उसके दिल की बात है
कर कर के हर किसी की कही , वो महान बन गया
जन्मा था जो परिंदा वो अब इंसान बन गया
Note:Regular reader of "knowprashant" might remember when same thing happened last time . This time however I was not exceptionally happy or sad that day . but its kinda hard not to reflect on your life on your birthday.
12 comments:
It is veryy beautiful....so well composed...and so hard hitting!!
Applause!!!! Its very well thought!
It is very beautiful .... :)
my favorite lines:
देखो सरल इंसान कितना गूढ़ हो गया
योवन के राह देखने में प्रोढ़ हो गया
btw, maybe the sign that you got is indeed that, a sign saying "not just yet, my boy!" :)
The Who : Thanks. I hope you are right .
Beautiful poem Prashant. A normal human being spend his entire life to understand what you mentioned through this poem.
Believe it or not, you are spiritual in your own ways... :-)
Cheers
Your expressions are so beautiful and original. This poem is now my personal fav from your blog...
बचपन में था चाहा उसने छुना आकाश को
फिर घोसले का प्रेम उसकी बेडी हो गया
जन्मा था जो परिंदा वो अब इंसान बन गया..
Your expressions are so beautiful and original. This poem is my personal fav from your blog...
बचपन में था चाहा उसने छुना आकाश को
फिर घोसले का प्रेम उसकी बेडी हो गया
जन्मा था जो परिंदा वो अब इंसान बन गया..
Thanks Rochana . this is my fave poem too .
जीवन में शीत आयी तौ दाना " खुदा" हुआ
रिमझिम जो बरसे मेघ तो , महा भोज हो गया.
कौए की भांति पाले उसने, सपने किसी और के
जब उड़ गयी वो कोयलें , वीराना हो गया.
beautiful... and no line can be missed, its so true...Loved the expressions, thoughts, loved it!!!
Thanks Shesha for your kind words :)
अभी तक कविता लिख रहे हो बबुआ,खैर कविता अच्छी लगी और ये भी लगा कि थोड़ी क्लिष्ट बन गई है।बाकी सब ठीक है।
और कुछ नया ताज़ा?
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