पीड़ा सी तुम कहराती हो , लज्जा सी तुम सकुचाती हो
बन कर आंसू तुम फूलों का ,टहनी पे ढलकी जाती हो
हर रात प्रतीक्षा करता हूँ , तुम सुबह ओस बन आती हो
तेरे आँचल के ढलने से , रात्री के कालिख धुलती है
पा कर के तेरा सरस स्पर्श ,मेरी पंखुरियां खुलती है
अंगडाई ले कर उठता है , चिर निद्रा में सोया संसार
तेरी बूंदों का अमृत रस, करता उसमे जीवन संचार
रात्रि की भटकी नौका को , सागर तट से मिलवाती हो
हर रात प्रतीक्षा करता हूँ , तुम सुबह ओस बन आती हो
दिन मुझे आमंत्रित करता है , कलरव् से कोलाहल से
छूती मुझको तमहर किरणे , छन कर आती तेरे आँचल से ,
जीवन गाथा का खल नायक , वो दिनकर मुझे जगाता है
पर उसे छुपा में देता हूँ , ढक कर पलकों के बादल से
फिर तुम आ कर ओ निशिगंधा , मिटटी की महक बढाती हो
हर रात प्रतीक्षा करता हूँ , तुम सुबह ओस बन आती हो
मंदिर से उठती शंख ध्वनी , मस्जिद से उठती एक अजान
मुझे तोड़ने को बढ़ते , दोनों के अनुयायी महान
गुंजन कर आता भ्रमर पुंज ,लेने मुझ से मेरा पराग
प्रेमी ले जाते तोड़ मुझे , फिर गाते अपना प्रेम राग
चाहे जो अंतिम यात्रा हो , तुम धो कर के मुझे सजाती हो
हर रात प्रतीक्षा करता हूँ ,तुम सुबह ओस बन आती हो
बहती थी बन के जल धरा , तुम इस धरती के आंगन में
में सुखी कंटक झाड़ी था ,जीवन रूपी इस उपवन में
देखा जब तुमने मुझको , नव जीवन का प्रसार हुआ
उस प्राण दात्री शक्ति से , इस पागल मन को प्यार हुआ
पर तेरा मेरा मेल कहाँ ,तेरे चाहत वो बादल था
वो रहने वाला नभतल का , मेरा घर तो ये धरातल था
देखा मैंने बस दूर खड़े , तुम कैसे वाष्पीकृत थी हुई
पाली तुमने अपनी चाहत , बादल से एकीकृत थी हुई
पर रखने को तुम दिल मेरा , चुपके से झलक दिखाती हो ,
हर रात प्रतीक्षा करता हूँ ,तुम सुबह ओस बन आती हो
11 comments:
ne
:)
उत्तम, सरस, मनोहर .. विशेषण कम पड़ जायेंगे |
श्रृंगार रस पर आपकी पकड़ निश्चित ही श्लाघनीय है |
चाहत मेरी तू ही पुष्प, वो बदल तो आवारा है
तेरे स्पर्श को पाने को हूँ अधीर मैं पूरी रात्रि
भ्रह्म काल के शुभ महूर्त पे ललाइट सी आती हूँ
कुछ प्रेम के उन क्षणों में तुझसे मिलकर जाती हूँ
किया नीयती ने विवश बनाकर बदल मेरा भाग्य
पर सत्य यही की अपना रूप मैं सिर्फ़ तुझे ही दिखलाती हूँ.....
Great blog here. Keep it up! Please try to include more information if possible.
Notebook
HI bhaiya,
Achhi poem hai.abhi tak meine har poem ya shayri mein kisi aur ko gulab ke liye tadapte hue dekha tha
this is the first poem where vice versa i have read.It's different.wowww..
Regards,
Himanshu Verma
I am feeling lost and I just wanted to reach out to you. I am sure it will pass by tomorrow morning to return again some other time. This is not how i expected life to be but what the hell...
@anon : Life Never goes by our plans . ping me if we know each other i will try to help if i can . may god give you strength
nice poem..
Thanks Rahul
Nice blog Prashant. Enjoyed reading it and good to know about you after a long time.
~Harsh
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