Thursday, May 17, 2012

भोर का सपना : Dawn ,Dream & Dream Girl

We are choosing hope over fear. (my first sales! acquired by Carlos Santana)

याद तुम्हारी, भोर का सपना ,उन्नींदा अलसाया सा 
रजनी के पिछले पहरों में ,चुपके से वो आया था 
आते देख उसे बगिया में ,पक्षी कलरव करने लगे 
प्रस्फुटित होने लगी कलिकाएँ , भ्रमर पराग रस भरने लगे 
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अरुणोदय की किरण प्रथम वो , पर्दे से छन कर आई थी 
सपने में ली तुमने जब , मादक सी  अंगडाई थी 
आधे  खुले नयन ढकने को ,जब चादर   को खुद पे खींचा था 
सिंदूरी लाली से तुमने ,क्षितिज रेखा को सींचा था 
चादर की अल्हड सलवट वो , प्राची उषा से धुलती  गयी  
निशिगंधा धीरे धीरे ,तेरी खुशबू में घुलती  गयी 
तुम ही  बनती खुशबू सुबह की , इस  अलौकिक  रासायन से 
 स्पर्श मात्र से जग जाता हूँ , तुम आती जब वातायन से 
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जब मैं  खोलूं नयन अपने , चंचला विलुप्त हो जाती है 
दिखती नहीं किसी और मुझे , हर ओर नजर पर आती है 
मैं  आँख मीच ,कोशिश करता ,सपने को जारी रखने की 
सपने में दूर कहीं सुनता ,ध्वनी ,  मैं उसके हसने की 
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" है बात मेरे मन में कोई , पर आज ना तुम्हे बताउंगी
तुम जाओ , दिवस व्यतीत करो , कल सपनो में फिर आउंगी "


Photo Credit  : Sharaff 

1 comment:

Shesha Chaturvedi said...

है बात मेरे मन में कोई , पर आज ना तुम्हे बताउंगी तुम जाओ , दिवस व्यतीत करो , कल सपनो में फिर आउंगी "
what an apt ending! Romantic poems are something i love to read... beautifully written. The simile are wonderfully drawn... सिंदूरी लाली से तुमने ,क्षितिज रेखा को सींचा था चादर की अल्हड सलवट वो , प्राची उषा से धुलती गयी....